भाषा एवं साहित्य >> संस्कृत-हिन्दी कोश संस्कृत-हिन्दी कोशवामन शिवराम आप्टे
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विद्यार्थियों की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह ग्रन्थ तैयार किया गया है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
(कोषकार का प्रथम प्राक्कथन)
यह संस्कृत-हिन्दी कोश जो मैं आप जनसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ,
न केवल विद्यार्थी की चिर-प्रतीक्षित आवश्यकता को पूरा करता है, अपितु
उसके लिए यह सुलभ भी है। जैसा कि इसके नाम से प्रकट है यह हाई स्कूल अथवा
कालिज के विद्यार्थियों की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तैयार
किया गया है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर मैंने वैदिक शब्दों को इसमें
सम्मिलित करना आवश्यक नहीं समझा। फलत: मैं इस विषय में वेद के पश्चवर्ती
साहित्य तक ही सीमित रहा। परन्तु इसमें भी रामायण, महाभारत, पुराण,
स्मृति, दर्शनशास्त्र, गणित, आयुर्वेद न्याय, वेदांत, मीमांसा, व्याकरण,
अलंकार, काव्य वनस्पति विज्ञान, ज्योतिष संगीत आदि अनेक विषयों का समावेश
हो गया है।
वर्तमान कोशों में से बहुत कम कोशकारों ने ज्ञान की विविध शाखाओं के तकनीकी शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हाँ, वाचस्पत्य में इस प्रकार के शब्द पाये जाते हैं, परन्तु वह भी कुछ अंशों में दोषपूर्ण है। विशेष रूप से उस कोश से जो मुख्यत: विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए ही तैयार किया गया हो, ऐसी आशा नहीं की जा सकती। यह कोश तो मुख्य रूप से गद्यकथा, काव्य, नाटक आदि के शब्दों तक ही सीमित है, यह बात दूसरी है कि व्याकरण, न्याय, विधि, गणित आदि के अनेक शब्द भी इसमें सम्मिलित कर लिये गये हैं। वैदिक शब्दों का अभाव इस कोश की उपादेयता को किसी प्रकार कम नहीं करता, क्योंकि स्कूल या कालिज के अध्ययन काल में विद्यार्थी की जो सामान्य आवश्यकता है उसको यह कोश भलीभांति-बल्कि कई अवस्थाओं में कुछ अधिक ही पूरा करता है।
कोश के सीमित क्षेत्र के पश्चात् इसमें शब्द योजना के विषय में यह बताना सर्वथा उपयुक्त है कि कोश के अन्तर्गत, शब्दों के विशिष्ट अर्थों पर प्रकाश डालने वाले उद्धरण, संदर्भ उन्हीं पुस्तकों से लिये गये हैं जिन्हें विद्यार्थी प्राय: पढ़ते हैं। हो सकता है कुछ अवस्थाओं में ये उद्धरण आवश्यक प्रतीत न हों, फिर भी संस्कृत के विद्यार्थी को, विशेषत: आरंभकर्ता को, उपयुक्त पर्यायवाची या समानार्थक शब्द ढूंढ़ने में ये निश्चय ही उपयोगी प्रमाणित होंगे।
दूसरी ध्यान देने योग्य इस कोष की विशेषता यह है कि अत्यन्त तकनीकी शब्दों की विशेषत: न्याय, अलंकार और नाट्यशास्त्र के शब्दों की-व्याख्या इसमें यथा स्थान दी गई है। उदाहरण के लिए देखो-अप्रस्तुत, प्रशंसा, उपनिषद्, सांख्य, मीमांसा, स्थायिभाव, प्रवेशक, रस, वार्तिक आदि। जहाँ तक अलंकारों का संबंध है, मैंने मुख्य रूप के काव्य प्रकाश का ही आश्रय लिया है-यद्यपि कहीं-कहीं चन्द्रलोक, कुवलयानन्द और रसगंगाधर का भी उपयोग किया है। नाट्यशास्त्र के लिए साहित्य दर्पण को ही मुख्य समझा है। इसी प्रकार महत्त्वपूर्ण शब्दचय, वाग्धारा, लोकोक्ति अथवा विशिष्ट अभिव्यंजनाओं को भी यथास्थान रक्खा है, उदाहरण के लिए देखो-गम्, सेतु, हस्त, मयूर, दा, कृ आदि। आवश्यक शब्दों से सम्बद्ध पौराणिक उपाख्यान भी यथास्थान दिये गये हैं। उदाहरणत: देखो-इन्द्र, कार्तिकेय, प्रह्लाद आदि। व्युत्पत्ति प्राय: नहीं दी गई-हाँ अत्यन्त विशिष्ट यथा अतिथि, पुत्र, जाया, हृषीकेश आदि शब्दों में इसका उल्लेख किया गया है। तकनीकी शब्दों के अतिरिक्त अन्य आवश्यक शब्दों के विषय में दिया गया विवरण विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा-उदा० मंडल, मानस, वेद, हंस। कुछ आवश्यक लोकोक्तियाँ ‘न्याय’ शब्द के अन्तर्गत दी गई है। प्रस्तुत कोश को और भी अधिक उपादेय बनाने की दृष्टि से अन्त में तीन परिशिष्ट भी दिये गये हैं। पहला परिशिष्ट छन्दों के विषय में है-इसमें गण, मात्रा, तथा परिभाषा आदि सभी आवश्यक सामग्री रख दी गई है। इसके तैयार करने में मुख्यत: वृत्तरत्नाकर और छन्दोमंजरी का ही आश्रय लिया है। परन्तु उन छंदों को भी जो माद्य, भारवि, दण्डी, अथवा भट्टि ने अतिरिक्त रूप से प्रयुक्त किया है, इसमें रख दिया गया है। दूसरे परिशिष्ट में कालिदास, भवभूति और मैक्समूलर की ‘इंडिया’ तथा वल्लभदेव की सुभाषितावली की भूमिका से जो कुछ ग्रहण किया है उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। तीसरा परिशिष्ट भौगोलिक शब्दों का संग्रह है इसमें मैंने कनिंगहम के ‘एन्शेंट ज्याग्राफी’ से तथा इंग्लिश संस्कृत डिक्शनरी में उपसृष्ट श्री बोरूह के निबंध से बड़ी सहायता प्राप्त की है तदर्थ मैं हृदय से उनका आभार मानता हूँ।
कोश के शब्दक्रम का ज्ञान आगे दिये ‘‘कोश के देखने के लिए आवश्यक निर्देश’’ से भली-भाँति हो सकेगा। मैं केवल एक बात पर आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ कि मैंने इस कोश में सर्वत्र ‘अनुस्वार’ का प्रयोग किया है। व्याकरण की दृष्टि से चाहे यह प्रयोग सर्वथा सही न हो, तो भी छपाई की दृष्टि से सुविधाजनक है। और मुझे विश्वास है कि कोश की उपयोगिता पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
समाप्त करने से पूर्व मैं उन सब विविध कृतियों का कृतज्ञ हूँ जिनसे इसको करने में मुझे सहायता मिली। इसके लिए सबसे पहली रचना प्रोफेसर तारानाथ तर्कवाचस्पति की ‘वाचस्पत्य’ है। इस कोश में दी गई सामग्री का अधिकांश उसी से लिया गया है, यद्यपि कई स्थानों पर संशोधन भी करना पड़ा है। वर्तमान संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरियों में जो शब्द, अर्थ और उद्धरण उपलब्ध नहीं है वे इसी कोश से लिये गये हैं। दूसरा कोश ‘‘दी संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी’’ प्रो० मोनियर विलियम्स का है जिनका मैं बहुत ऋणी हूँ। इस कोष का मैंने पर्याप्त उपयोग किया है। अत: मैं इस सहायता का आभारी हूँ। अन्त में मैं ‘जर्मन वर्टरबुश’ के कर्ता डा० रॉथ और बॉथलिंक को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता। इनके कोश में अनेक उद्धरण और संदर्भ है-परन्तु अधिकांश वैदिक साहित्य से लिये गये हैं। इसके विपरीत मैंने अधिकांश उद्धरण अपने उस संग्रह से लिये हैं जो भवभूति, जगन्नाथ पंडित, राजशेखर, बाण, काव्यप्रकाश शिशुपालवध, किरातार्जुनीय नैषधचरित, शंकर-भाष्य और वेणीसंहार आदि की सहायता से तैयार किया गया है। इसके अतिरिक्त उन ग्रन्थकर्ताओं और सम्पादकों का भी मैं कृतज्ञ हूँ जिनकी सहायता यदा-कदा प्राप्त करता रहा हूँ।
अन्त में मुझे विश्वास है कि ‘स्टूडैंट्स संस्कृत-हिन्दी डिक्शनरी’ केवल उन विद्यार्थियों के लिए ही उपयोगी सिद्ध नहीं होगी जिनके लिए यह तैयार की गई है-बल्कि संस्कृत के सभी पाठक इससे लाभ उठा सकेंगे। कोई भी कृति चाहे वह कितनी ही सावधानी से क्यों न तैयार की गई हो-सर्वथा निर्दोश नहीं होती। मेरा यह कोश भी कोई अपवाद नहीं है और विशेष रूप से उस अवस्था में जबकि छापने की शीघ्रता की गई हो। अत: मैं उन व्यक्तियों से, जो इस कोश को अपनाकर मेरा सम्मान करें, यह निवेदन करता हूँ कि जहाँ कहीं इसमें वे कोई अशुद्धि देखें, अथवा इसके सुधारने के लिए कोई उत्तम सुझाव देना चाहें, तो मैं दूसरे संस्करण में उनको समावेश करने में प्रसन्नता अनुभव करूँगा।
वर्तमान कोशों में से बहुत कम कोशकारों ने ज्ञान की विविध शाखाओं के तकनीकी शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हाँ, वाचस्पत्य में इस प्रकार के शब्द पाये जाते हैं, परन्तु वह भी कुछ अंशों में दोषपूर्ण है। विशेष रूप से उस कोश से जो मुख्यत: विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए ही तैयार किया गया हो, ऐसी आशा नहीं की जा सकती। यह कोश तो मुख्य रूप से गद्यकथा, काव्य, नाटक आदि के शब्दों तक ही सीमित है, यह बात दूसरी है कि व्याकरण, न्याय, विधि, गणित आदि के अनेक शब्द भी इसमें सम्मिलित कर लिये गये हैं। वैदिक शब्दों का अभाव इस कोश की उपादेयता को किसी प्रकार कम नहीं करता, क्योंकि स्कूल या कालिज के अध्ययन काल में विद्यार्थी की जो सामान्य आवश्यकता है उसको यह कोश भलीभांति-बल्कि कई अवस्थाओं में कुछ अधिक ही पूरा करता है।
कोश के सीमित क्षेत्र के पश्चात् इसमें शब्द योजना के विषय में यह बताना सर्वथा उपयुक्त है कि कोश के अन्तर्गत, शब्दों के विशिष्ट अर्थों पर प्रकाश डालने वाले उद्धरण, संदर्भ उन्हीं पुस्तकों से लिये गये हैं जिन्हें विद्यार्थी प्राय: पढ़ते हैं। हो सकता है कुछ अवस्थाओं में ये उद्धरण आवश्यक प्रतीत न हों, फिर भी संस्कृत के विद्यार्थी को, विशेषत: आरंभकर्ता को, उपयुक्त पर्यायवाची या समानार्थक शब्द ढूंढ़ने में ये निश्चय ही उपयोगी प्रमाणित होंगे।
दूसरी ध्यान देने योग्य इस कोष की विशेषता यह है कि अत्यन्त तकनीकी शब्दों की विशेषत: न्याय, अलंकार और नाट्यशास्त्र के शब्दों की-व्याख्या इसमें यथा स्थान दी गई है। उदाहरण के लिए देखो-अप्रस्तुत, प्रशंसा, उपनिषद्, सांख्य, मीमांसा, स्थायिभाव, प्रवेशक, रस, वार्तिक आदि। जहाँ तक अलंकारों का संबंध है, मैंने मुख्य रूप के काव्य प्रकाश का ही आश्रय लिया है-यद्यपि कहीं-कहीं चन्द्रलोक, कुवलयानन्द और रसगंगाधर का भी उपयोग किया है। नाट्यशास्त्र के लिए साहित्य दर्पण को ही मुख्य समझा है। इसी प्रकार महत्त्वपूर्ण शब्दचय, वाग्धारा, लोकोक्ति अथवा विशिष्ट अभिव्यंजनाओं को भी यथास्थान रक्खा है, उदाहरण के लिए देखो-गम्, सेतु, हस्त, मयूर, दा, कृ आदि। आवश्यक शब्दों से सम्बद्ध पौराणिक उपाख्यान भी यथास्थान दिये गये हैं। उदाहरणत: देखो-इन्द्र, कार्तिकेय, प्रह्लाद आदि। व्युत्पत्ति प्राय: नहीं दी गई-हाँ अत्यन्त विशिष्ट यथा अतिथि, पुत्र, जाया, हृषीकेश आदि शब्दों में इसका उल्लेख किया गया है। तकनीकी शब्दों के अतिरिक्त अन्य आवश्यक शब्दों के विषय में दिया गया विवरण विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा-उदा० मंडल, मानस, वेद, हंस। कुछ आवश्यक लोकोक्तियाँ ‘न्याय’ शब्द के अन्तर्गत दी गई है। प्रस्तुत कोश को और भी अधिक उपादेय बनाने की दृष्टि से अन्त में तीन परिशिष्ट भी दिये गये हैं। पहला परिशिष्ट छन्दों के विषय में है-इसमें गण, मात्रा, तथा परिभाषा आदि सभी आवश्यक सामग्री रख दी गई है। इसके तैयार करने में मुख्यत: वृत्तरत्नाकर और छन्दोमंजरी का ही आश्रय लिया है। परन्तु उन छंदों को भी जो माद्य, भारवि, दण्डी, अथवा भट्टि ने अतिरिक्त रूप से प्रयुक्त किया है, इसमें रख दिया गया है। दूसरे परिशिष्ट में कालिदास, भवभूति और मैक्समूलर की ‘इंडिया’ तथा वल्लभदेव की सुभाषितावली की भूमिका से जो कुछ ग्रहण किया है उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। तीसरा परिशिष्ट भौगोलिक शब्दों का संग्रह है इसमें मैंने कनिंगहम के ‘एन्शेंट ज्याग्राफी’ से तथा इंग्लिश संस्कृत डिक्शनरी में उपसृष्ट श्री बोरूह के निबंध से बड़ी सहायता प्राप्त की है तदर्थ मैं हृदय से उनका आभार मानता हूँ।
कोश के शब्दक्रम का ज्ञान आगे दिये ‘‘कोश के देखने के लिए आवश्यक निर्देश’’ से भली-भाँति हो सकेगा। मैं केवल एक बात पर आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ कि मैंने इस कोश में सर्वत्र ‘अनुस्वार’ का प्रयोग किया है। व्याकरण की दृष्टि से चाहे यह प्रयोग सर्वथा सही न हो, तो भी छपाई की दृष्टि से सुविधाजनक है। और मुझे विश्वास है कि कोश की उपयोगिता पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
समाप्त करने से पूर्व मैं उन सब विविध कृतियों का कृतज्ञ हूँ जिनसे इसको करने में मुझे सहायता मिली। इसके लिए सबसे पहली रचना प्रोफेसर तारानाथ तर्कवाचस्पति की ‘वाचस्पत्य’ है। इस कोश में दी गई सामग्री का अधिकांश उसी से लिया गया है, यद्यपि कई स्थानों पर संशोधन भी करना पड़ा है। वर्तमान संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरियों में जो शब्द, अर्थ और उद्धरण उपलब्ध नहीं है वे इसी कोश से लिये गये हैं। दूसरा कोश ‘‘दी संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी’’ प्रो० मोनियर विलियम्स का है जिनका मैं बहुत ऋणी हूँ। इस कोष का मैंने पर्याप्त उपयोग किया है। अत: मैं इस सहायता का आभारी हूँ। अन्त में मैं ‘जर्मन वर्टरबुश’ के कर्ता डा० रॉथ और बॉथलिंक को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता। इनके कोश में अनेक उद्धरण और संदर्भ है-परन्तु अधिकांश वैदिक साहित्य से लिये गये हैं। इसके विपरीत मैंने अधिकांश उद्धरण अपने उस संग्रह से लिये हैं जो भवभूति, जगन्नाथ पंडित, राजशेखर, बाण, काव्यप्रकाश शिशुपालवध, किरातार्जुनीय नैषधचरित, शंकर-भाष्य और वेणीसंहार आदि की सहायता से तैयार किया गया है। इसके अतिरिक्त उन ग्रन्थकर्ताओं और सम्पादकों का भी मैं कृतज्ञ हूँ जिनकी सहायता यदा-कदा प्राप्त करता रहा हूँ।
अन्त में मुझे विश्वास है कि ‘स्टूडैंट्स संस्कृत-हिन्दी डिक्शनरी’ केवल उन विद्यार्थियों के लिए ही उपयोगी सिद्ध नहीं होगी जिनके लिए यह तैयार की गई है-बल्कि संस्कृत के सभी पाठक इससे लाभ उठा सकेंगे। कोई भी कृति चाहे वह कितनी ही सावधानी से क्यों न तैयार की गई हो-सर्वथा निर्दोश नहीं होती। मेरा यह कोश भी कोई अपवाद नहीं है और विशेष रूप से उस अवस्था में जबकि छापने की शीघ्रता की गई हो। अत: मैं उन व्यक्तियों से, जो इस कोश को अपनाकर मेरा सम्मान करें, यह निवेदन करता हूँ कि जहाँ कहीं इसमें वे कोई अशुद्धि देखें, अथवा इसके सुधारने के लिए कोई उत्तम सुझाव देना चाहें, तो मैं दूसरे संस्करण में उनको समावेश करने में प्रसन्नता अनुभव करूँगा।
वी०एस० आप्टे
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